ग़ज़ल 3's image

मुस्कुराओ कि मुझसे ख़ता हो गई,

एक ही मुलाकात में वफ़ा हो गई।


मैं भी कैसे निकलता इस अजाब से,

ज़माने भर में उल्फ़त वबा हो गई।


जब से आई है तबियत उस पर,

मेरी तबियत ग़म-ज़दा हो गई।


अंजाम-ए-उल्फ़त थी लाज़िम,

मे

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