
मुस्कुराओ कि मुझसे ख़ता हो गई,
एक ही मुलाकात में वफ़ा हो गई।
मैं भी कैसे निकलता इस अजाब से,
ज़माने भर में उल्फ़त वबा हो गई।
जब से आई है तबियत उस पर,
मेरी तबियत ग़म-ज़दा हो गई।
अंजाम-ए-उल्फ़त थी लाज़िम,
मे
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मुस्कुराओ कि मुझसे ख़ता हो गई,
एक ही मुलाकात में वफ़ा हो गई।
मैं भी कैसे निकलता इस अजाब से,
ज़माने भर में उल्फ़त वबा हो गई।
जब से आई है तबियत उस पर,
मेरी तबियत ग़म-ज़दा हो गई।
अंजाम-ए-उल्फ़त थी लाज़िम,
मे