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गई शब से उम्र-ए-रफ़्ता में हूँ।

गई शब से उम्र-ए-रफ़्ता में हूँ,

न जाने कोन से सफ़र में हूँ?


ढूंढ रहा हूँ ख़ुद सा कोई बशर

बाज़ार में नहीं अपने घर में हूँ।


जीना चाहता हूँ ज़िंदगी फिर से,

बस ख़ुद ही के हसीन मंज़र में हूँ।


Tag: poetry और5 अन्य
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