यथार्थ's image

गिर चुकी है छत पुराने दिनों की

नए दौर के चमकते शामियाने लगे हैं

थोड़े पैसे ज़्यादा कमाने की ख़ातिर

अपनी मिट्टी से लोग दूर जाने लगे हैं


बड़े समझ बैठे हैं जो ख़ुद को ग़ुरूर में

हम छोटों से नज़रें चुराने लगे हैं


फ़र्ज़ की शमा' से डर है जलने का जिनको

हर नातों के दीये बुझाने लगे हैं


जज़्बातों की छतरी भला वो क्यूँ खोलें

मतलब की बारिश में जो नहाने लगे हैं


देख चौराहों पे खिलौने बेचता "भविष्य"

सेठ गाड़ियों के शीशे च

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