देश के नौजवानों
मत चलाओ तुम
मन की नदी में
नफ़रत की नाव
होगी मंज़िल इसकी
साहिल-ए-अलगाव
मत रोको तुम
सद्भाव का अविरल बहाव
कायम करो भाईचारा
रखो परस्पर लगाव
मत लाओ तुम
विचारों में हिंसा का भाव
बहुत हुआ, ख़त्म करो अब
बैर और मज़हबी तनाव
मत जगाओ तुम
दहशत के दानव को
फिर क्या शहर क्या
Read More! Earn More! Learn More!