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तरक़्क़ी

तरक़्क़ी का है यही पैमाना

अपनों से ही दूर हो जाना

अतिथि बनके घर को आना

दो चार दिनों में वापस जाना

ख़ुद को काफी व्यस्त बताना


माँ-बाप कहते हैं बेटों से .... 

इतनी जल्दी जाता क्यूँ ऐसे

संग कुछ रोज़ और बिता ले

बेटे कहते हैं .... 

मजबूरी है, रुक नहीं सकते

वेतन काट लेंगे ऑफिस वाले


जवाब सुन, वे समझ जाते हैं

न चाह

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