
बिसात-ए-हयात पर मैंने
लगाया दाँव-ए-जज़्बात
ख़ुद-ग़र्ज़ सारे आते गए
हर बाज़ी मुझ को हराते गए
हार कर जब मैं उठा
मेरे अक्स ने मुझ से कहा
झूठ नहीं बोलूँगा तुझ से
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बिसात-ए-हयात पर मैंने
लगाया दाँव-ए-जज़्बात
ख़ुद-ग़र्ज़ सारे आते गए
हर बाज़ी मुझ को हराते गए
हार कर जब मैं उठा
मेरे अक्स ने मुझ से कहा
झूठ नहीं बोलूँगा तुझ से