
नियम क़ायदों की दीवार
रस्मों रिवाजों के बंधन
तोड़ कर उन्मुक्त हो जाता है
दिल जब किसी पे आता है
शरारत की हद कहाँ तक
क्या है बेशर्मी का दायरा
पागल जान ना पाता है
दिल जब किसी पे आता है
जीता है जिसकी ख़ातिर
उसी पे चाहता है मरना
फिर और कहाँ कोई भाता है
दिल जब किसी पे आता है
इक ज़रा सी बेरुख़ी
बेवफ़ाई महबूब की
सहन नहीं कर पाता है
दिल जब किसी पे आता है
पाप क्या ह
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