
बचपन बड़ा सुहाना था
क्या ख़ूब अफ़साना था
पापा के कंधों पे चढ़ना
जी भर, मम्मी को सताना था
बात बात पर, रूठ जाना था
रो रो कर, ज़िद मनवाना था
बिन लोरी, सोना नहीं
खिलौनों के लिए अड़ जाना था
नहाने से, जी चुराना था
बार-बार छिप जाना था
काजल न लगवाने को,
ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाना था
बारिश में भीग, घर आना था
काग़ज़ की ना
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