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फ़साना बन जाता है

हम तुम और दास्तां अपनी मोहब्बत की,

महफ़िल-ए-समा में कहता हूं तो फ़साना बन जाता है।


एक तरफ़ा आशिकों के मसले ही कुछ और हैं,

दिल के बात वो समझते नही और ना ये दिल कह पाता है।


वो जो मेरी आंखों में आंसू देख टूट जाया करता था कभी,

जाने क्यूं अब वो मुझे इतना सताता है?


बेखबर हैं हर चीज़ से के फ़र्क नही पड़ता,

ख्याल-ए-दुनिया में अब कौन आता कौन जाता है।


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