न जबाब बदला है न सवाल बदला है,
बदलने को तो कई बार ये साल बदला है।
पिछले और इस बरष भी खस्ता हाल है,
साल बदलने से कहाँ हमारा हाल बदला है।
फूल और पत्त्ते तो टूट कर बिखर गए,
गौर से देखो कहाँ पर वो डाल बदला है।
उससे निकल कर नदियां समंदर हुईं,
कबसे खड़ा है कहाँ वो हिमाल बदला है।
सूरज चंदा वही है और जमी आसमा भी,
चक्कर लगाने का कहाँ बवाल बदला है।
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