
एक ही है बंदर
ना जाने कितने मदारी
कोई हँसता कोई रोता
कभी गुस्से में डमरू बजाता मदारी
तालियां बजाती जनता
पर उनकी दिलों के जज़्बात खाली
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एक ही है बंदर
ना जाने कितने मदारी
कोई हँसता कोई रोता
कभी गुस्से में डमरू बजाता मदारी
तालियां बजाती जनता
पर उनकी दिलों के जज़्बात खाली