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क्यूँ खुले मुँह सब खड़े हैं शिष्य ग़ालिब मीर के

सुन लिए क्या बोल सबने मसखरे की पीर के


आँसुओं को अब बहाने से भला क्या फ़ायदा

नीर से कैसे धुलेंगे....दाग हैं जो नीर के


चूमते हैं गाल को पर सोचता हूं काट लूँ,

गाल

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