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पता नहीं कब अभिव्यक्ति आप से तुम पर आ

गयी,

धीरे धीरे मैं उसमें और वो मुझमें समा गई।॥


मैं अकेला चला था राह पर पता नहीं कब वो

मुसाफिर बनके आ गई,

जीवन भर की रोशनी तो नहीं पर वो चार दिन में

ही मेरे जीवन में उजाला छा गई,

पता नहीं कब अभिव्यक्ति........ ॥|


साथ तो वो जीवन भर थी पर पता नहीं एक दिन

मेरे जीवन में केसे उदासी सी छा गई,

बहोत ढूंढा मेने उसको हर जगह पर उस दिन से वो

गुमशुदा सी हो गई।

पता नहीं कब अभिव्यक्ति ....


जब भी आया दुख मेरे जीवन में पता नहीं कब वो

उसे अपना समझ कर दबा गई!

अपनी मौत तो नहीं पर मेरे जनाजे को वो अपनी

सांसे रोक कर टाल गई! !

पता नहीं कब अभिव्यक्त

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