
उन आँखों में कोई तिलिस्म गहरा होगा
हयात पे बिन गुफ़्तगू उसका पहरा होगा
उसके चेहरे से ही आलम में सवेरा होगा
उसकी साँसों ने ही यहाँ इत्र बिखेरा होगा
सफ़र तो मिल के जुदा होने का ही रहा होगा
फ़क़त वो इक पल
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उन आँखों में कोई तिलिस्म गहरा होगा
हयात पे बिन गुफ़्तगू उसका पहरा होगा
उसके चेहरे से ही आलम में सवेरा होगा
उसकी साँसों ने ही यहाँ इत्र बिखेरा होगा
सफ़र तो मिल के जुदा होने का ही रहा होगा
फ़क़त वो इक पल