उसकी ही तपिश से अब तक जल रही थी मैं
जब वो घर लौटा ज़रा संभल रही थी मैं
आँखों में फ़रेब का इक कतरा भी नहीं था
उसकी भी जसारत की हद समझ रही थी मैं
इस बार वफ़ा की ख़ुशबू तो आ रही है
रातों में फिर से जु
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उसकी ही तपिश से अब तक जल रही थी मैं
जब वो घर लौटा ज़रा संभल रही थी मैं
आँखों में फ़रेब का इक कतरा भी नहीं था
उसकी भी जसारत की हद समझ रही थी मैं
इस बार वफ़ा की ख़ुशबू तो आ रही है
रातों में फिर से जु