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कुछ भी तो न था तेरे मेरे बीच

कुछ भी तो न था तेरे मेरे बीच
फिर भी न जाने क्यूँ ..
हर शाम तुझसे मिलने की आस
मुझे घर से निकाल लाती थी
और तेरे घर के पास आते ही
मेरी साँसें थम सी जाती थी
क्षण भर में ही ये आँखें
चारों तरफ का मुआयना कर लेती थीं
बस तेरी इक झलक मिल जाए ये सोचती हुई
धीमे धीमे तेरी गली से गुज़र जाती थी


कुछ भी तो न था तेरे मेरे बी

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