
इश्क़ और उम्र के बीच कहाँ ही होता है कोई भी नाता
इक रूह तक समाता इक दिल छू भी नहीं है पाता
होता है जब इश्क़ तो उम्र कम हो ही जाती है
उम्र के साथ भी कम ये इश्क़ हो ही नहीं है पाता
नूर-ए-इश्क़ की उमरों को नापा ही नहीं है जाता
नूर-ए-
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