![वो काला लड़का!'s image](https://kavishala-ejf3d2fngme3ftfu.z03.azurefd.net/kavishalalabs/post_pics/%40raksha-pandya/vo-kala-laraka/1639374197510_13-12-2021_11-13-24-AM.png)
घर के आँगन में कुछ बच्चे खेल रहे थे। मैं भी उन्हें खेलते हुए देख रही थी। उनमें से एक बच्चे का नाम मुझे पता नहीं था, इसलिए मैंने दूसरे बच्चों से उसका नाम पूछ लिया तो वे तपाक से बोल उठे "अच्छा, वो काला लड़का, उसका नाम तो 'अनन्त' है।"
काला लड़का!
मुझे सुनकर अच्छा नहीं लगा। आज के समय में बच्चों द्वारा किसी बच्चे की पहचान इस तरह से बताया जाना मुझे काफी अचंभित कर गया। मैंने उन बच्चों को टोका भी, कि ऐसा नहीं बोलते। लेकिन उन्होंने मेरी बात को हँसकर अनसुना कर दिया।
मुझे नहीं पता कि उस बच्चे को ये शब्द सुनकर कैसा लगा होगा, हो सकता है कि अगले ही पल वो सबकुछ भूलकर खेलने में व्यस्त हो गया हो। लेकिन उन बच्चों द्वारा उसे बोले गए वो शब्द मुझे काफी चुभे। फिर मुझे विचार आया कि ये कोई नई या अचंभित होने वाली बात नहीं है। आज भी हमारे समाज में काला, मोटा या भद्दा, जैसे शब्द बड़ी ही आसानी से किसी को भी बोल दिए जाते हैं, वो भी ये सोचे-समझे बिना कि सामने वाले को कैसा लगेगा। आजकल ये शब्द इतने आम हो गए है कि, कभी-कभी तो मैं भी किसी व्यक्ति की पहचान उसके असली नाम से नहीं बल्कि इन अशिष्ट विशेषणों से बताती हूँ।
हमारे समाज में कुछ शब्दों के गलत प्रयोग इतने अधिक प्रचलन में है कि अब ये हमारी सामान्य बोलचाल की भाषा का एक अभिन्न हिस्सा बन गए हैंं और हम भी बड़े सहज ढंग से कभी हँसी-मजाक में, तो कभी व्यंग्यात्मक लहजे में इन शब्दों का प्रयोग करते ही चले जा रहे है।
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