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भारत की समृद्धि और संस्कार से परिचित कराते हमारे 'गणगौर गीत'

'गणगौर', मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र का एक गौरवमयी पर्व है। माना जाता है कि, चैत्र महीने की एकादशी के दिन माता ससुराल से अपने मायके यानी 'निमाड़' अंचल में आती है। और निमाड़ में माता गणगौर को 'रानी रणुबाई' के नाम से जाना जाता है। जब माताजी अपने मायके आ रही होती है, तब रास्ते में उन्हें एक सुहागिन नारी मिलती है, तथा इस गीत के माध्यम से उनसे वह एक नन्हें बालक की मनुहार करती है-
"रुनझुन-रुनझुन रानी रणुबाई चल्या पीहरिया नी वाट होssss....2
रस्ता म् मिली गई वांझूली बाई, अध बीच रस्तो रोक्यो होssss
एक बालुड़ों माता हमक् हो देवो, जब तुम पीयर पधारो होssss..."
"रानी रनुबाई अपने ससुराल से सज-धज कर जब अपने मायके जा रही होती है, तब उन्हें रास्ते में एक सुहागिन नारी मिलती है तथा उन्हें रोककर वह उनसे विनती करती है कि, माता! जब भी आप अपने मायके पधारे तो साथ में मेरी गोद भी हरी करती जाइए।"
बदले में माता भी उस नारी को गीत के माध्यम से जवाब देते हुए उससे यह कहती है कि, पिछले जन्म में तुमने कुछ गलतियां की थी, जिस वजह से तुम्हारे घर अभी तक पालना नहीं बंधा है -
"कंडा प कंडा तूनss फोड़्या वांझूली बाई, ऊपर से ढोलई राखss होssss..."
"तुमने गोबर के उपले से उपला फोड़ा, साथ ही राख यानी कचरा छत से फेंका।"
"दिवड़ा से दिवड़ा तूनss जोड़्यो वांझूली बाई, खेलता बाला रड़ाया होssss"
"तुमने दीपक से दीपक जलाए, साथ ही खेलते बच्चों को भी रुलाया।"
"भरया कलश तूनss ढोल्या वांझूली बाई, डेलss क् ठोकर मारी होssss...."
"तुमने भरे घड़े का पानी व्यर्थ बहाया, साथ ही घर की देहरी को भी
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