
‘खारा कहीं गंगा का किनारा हो न जाए‘
अमृत धारा की प्यास कहीं मर न जाए
मैला कहीं जमुना का सागर हो न जाए
सदियों की गागर कहीं रीति हो न जाए
कान्हा की प्रीत कहीं भटक न जाए
ब्रज की गलियां कहीं खामोश हो न जाएँ
राधा का रास कहीं फिर सज न पाए
गोपियों का माथा कहीं सूना हो न जाए
बाट जोहती निगाहें कहीं थक न जाएँ
धूल भरी शाम की बौछारे वापिस फिर न आएँ
अधजले दरवाज़े छोड़ कर कोई चला न जाए
छत्तों पर खामोश घटाएँ कहीं उन्
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