
गुलशन में जाना छोड़ दिया है, गुल अब वहां खिलते नहीं
खार से नाता तोड़ दिया है, कांटे भी गर्मजोशी से मिलते नहीं
काग़ज़ की कश्तियां थीं जो, सहलाब में पूरी बह गईं
ख़्वाब दोबारा कैसे देखें, वो सागर से सवाल करते नहीं
सामने जो बदल रहा है हर रोज़, उससे कोई शिकायत नही
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