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भारत एक खोज़, पढ़ने पर

नज़ारे वही, फ़िज़ाएं वही, आसमाँ वही, फूलों की रंगत वही

फिर क्यों बदली बदली लगती है मेरी यादों की ये सरजमीं


क्या करोड़ों यादों का जाम इन धूल भरी गलियों में कहीं छलक गया

क्या सावन की आँधियों का सोंधापन इन सड़कों पर कहीं भटक गया


कितने राहगुजर मिले है यहाँ, किस के पास ये हिसाब होगा

कितने क़दमों को धूल ने चूमा होगा, किस के पास ये जवाब होगा


उन्होंने आकर बसा ली मिट्टी की सुगन्ध साँसों में, वो दिल की कशिश भूल गए

उनके घर बार महकने लगे, वो देवदार के सायों में मरुस्थल की तपिश भूल गए


इस जमीं को सींचा है पुश्तों ने तपते आसमान तले अपना वजूद मिटा कर

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