
पाक हैं धागे सबके, पर पिरोना छोड़ दिया
है अक़ीदत भी मगर मुहब्बत संजोना छोड़ दिया
सब आकाओं के छप्पर तले सूखा-पसंद हैं
सावन बदनाम है कि उसने भिगोना छोड़ दिया
यूँ ठहाकों से हँसा गई फ़रेबी कि शराफ़त ने
दामन-ए-हस्सास का कोना छोड़ दिया
ये किस गर्द में खींच ले आई है सियासत इस दौर
कि लोगों ने मय्यतों तक पे रोना छोड़ दिया
सो जाते हैं बेफ़िक्र ही अब शब-ए-क़यामत में
वो जो कहते थे कभी कि सोना छोड़ दिया
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