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पायदारी ऐसी कि उठते कदम रवाँ ही रहे

पायदारी ऐसी कि उठते कदम रवाँ ही रहे

हम उसकी मिज़ाजी से हैराँ थे, हैराँ ही रहे 


वो सहरा-पसंद है तो तहों से न रखे उम्मीद

गर बरसने को है तो फिर आसमाँ ही रहे 


हर दफ़ा, हर निगाह मंज़र बदले दिखते हैं

कैसेकर करें उम्मीद कि ये जहाँ, जहाँ ही रहे 


कुछ लहजे अपने भी होने चाहिये सो रखना

ज़रूरी नहीं नुमाइन्दों के मुँह ज़बाँ ही रहे 

Tag: ghazal और6 अन्य
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