
मैं चला, चलता रहा, और चला ही रहा
पर मेरा, मेरे-आप से फ़ासला ही रहा
बाद सफ़र के मिले जो भी चारागर मिले मुझे
राह में साथ तो मेरे आबला ही रहा
उससे मिलना धीमे कम, फिर ख़तम हो गया
फिर इंतज़ार-ओ-सितम का सिलसिला ही रहा
नई-नई सुबह वो बुझा आफ़ताब होने लगा
कई-कई रात मैं भी जला-जला ही रहा
कुछ मेरा हाल भी था जिसपे मेरा ज़ोर न चला
हाल को भी मेरे मुझसे गिला
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