
इंतिहा ख़ैर कि मेरे सर तेरे ख़यालों का बसर होता है
वरना तेरा साथ होना कहाँ किसीको मयस्सर होता है
न पहले, न बाद, न रात, न सहर सुकूँ मुख़्तसर होता है
किसी से मिलना-बिछड़ना भी कितना बा-असर होता है
किस किनारे बैठें, किसे ताकें, किस से लिपटा करें
अब यहाँ न दरिया, न फूल, न वो, न भँवर होता है
कहे माने पे है ये अपना चलना, ठहरना, ये जिये जाना
सुनते हैं तक़दीर बदल
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