
हाँ, यहीं की बात है जहाँ सत्ता कुटिया लूट जाती है
कहीं घर मिट्टी होते हैं, कहीं पुलिया टूट जाती है
मुलाज़िमी लेट जाती है टाई-सूट-बूट के आगे
और गरीबों को दारोगा की लाठियाँ कूट जाती है
वहाँ बारिश न रुके तो शिकन ही आती है पेशानी पे
यहाँ एक फसल टूटती है तो छातीयाँ फूट जाती है
अभ
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