ग़ज़ल's image
ख़ुद को बाँटता रहा हूँ मैं, झूठ की परत डाल कर।
ऊपर से अब बचा नहीं, भीतर से हूँ भरा हुआ।।

मंदिर के आसपास,न आ जाये मयखाना ।
पुजारी बाहर से हॅसता है, भीतर से है डरा हुआ।।
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