
परहित में त्यागे जो निज हित और मीत।
सीखो तुम श्रीराम से, रे मन मानुष रीत॥
संतों के संताप सुन, जो हो उठे अधीर,
युवा काल में ही हरे, जा के संतन पीर;
असुरों से अदावत और पत्थरों से प्रीत।
सीखो तुम श्रीराम से, रे मन मानुष रीत॥
पितृ वचन निभाने को औ’ बचाने लाज,
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