
सप्त अश्वों पर सवार, देखो सूरज आ रहा है।
धुंध की काली परतों का पर्दा हटाता जा रहा है।
उकेर रहा है आसमान पर कुछ नई इबारतें,
धूल, धक्कड़, फूल, कंकड़ सब जलाता जा रहा है।
नन्हे-नन्हे कदम और मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं,
आसमान को छूने की, मेरी कहाँ औकात है।
लेकिन हिम्मत तो देखो, बढ़ता ही चला जा रहा है,
आकाश को समेटने का सपना दिखाता जा रहा है।
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