शिक्षक
अनपढ़ अनगढ़ मिट्टी को
रौंद करे चिकनाई
चाक बिठाई करे गढ़ाई
घड़ा सुंदर बन जाई
कच्ची माटी थाप के
ज्ञान चाक पर दियो घुमाई
अपने सुघड़ हाथ से
सजीव मूर्ति दी बनाई
जब देख्यो मैं गढ़ गयो
करी कड़ी तपाई
वशिष्ठ विश्वामित्र से
ज्यूँ थे तपे रघुराई
प्रेम धैर्य मेहनत करी
मानस दियो बनाई
ऐसे शिक्षक आपणो
अपनी छाप लगाई
———
यह कविता एक शिक्षक की महत्ता और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना करती है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:
1. **अनपढ़ अनगढ़ मिट्टी को रौंद करे चिकनाई, चाक बिठाई करे गढ़ाई, घड़ा सुंदर बन जाई**:
- यहाँ अनपढ़ और अनगढ़ मिट्टी से तात्पर्य एक ऐसे विद्यार्थी से है जो प्रारंभिक अवस्था में कच्चा और अपरिपक्व होता है। शिक्षक उसे अपने ज्ञान और मेहनत से गढ़ते हैं, जैसे कुम्हार मिट्टी को चाक पर रखकर सुंदर घड़ा बनाता है।
2. **कच्ची माटी थाप के, ज्ञान चाक पर दियो घुमाई, अपने सुघड़ हाथ से, सजीव मूर्ति दी