रावण के प्रश्न:
गली, मोहल्ला, गाँव, नगर,
देश, विदेश, शहर-शहर,
करोड़ों को तुम मार चुके,
पुतलो को तुम बार चुके।
है प्रश्न मेरा तुमसे मानव,
तुम दानव को कब मारोगे?
तेरे मन के भीतर जो बैठा है,
असली रावण को कब मारोगे?
सहस्र इकतालीस वर्ष विगत हुए,
करते मुझसे नफ़रत तुम्हें,
हर रोज नया जो दिखता है,
उस रावण को कब मारोगे?
मैंने छल से हरा था सीता को,
पर मर्यादा में क़ायम था,
तुम व्यभिचार में डूब चुके,
उस रावण को कब मारोगे?
करनी का फल मुझको मिला,
खोए प्राण, कुल कुनबा, सत्ता,
अब सरेआम लूटती बेटी,
सत्ता ही ख़ुद अब रावण है बना।
बृजभूषण क्यों नायक है,
खिलाड़ी बने खलनायक हैं,
उन्नाव, कठुआ, आर जी कर,
ख़ुद सोचो
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