
मुनासिब नहीं है मेरा
कुछ बोलना, सिकंदर
रंजिशों के शहर में
तमाशाई हैं हम ।।
इल्तिजा इतनी है
तू सुन मेरी ख़ामोशी
नफ़रतों के बाज़ार में
सौदाई हैं हम ।।
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मुनासिब नहीं है मेरा
कुछ बोलना, सिकंदर
रंजिशों के शहर में
तमाशाई हैं हम ।।
इल्तिजा इतनी है
तू सुन मेरी ख़ामोशी
नफ़रतों के बाज़ार में
सौदाई हैं हम ।।