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पहले वाली होली

हटा दिए गए हैं

चुन-चुन कर कुछ रंग आसमाँ से,

टाँग दिए हैं श्वेत परदे,

सूनापन, है फीकापन,

ये कैसी होली है?


खिड़की-दरवाज़े बंद करो,

रहो दुबक कर घर में,

बाहर ग्रहण लगा है,

सहिष्णुता की सोच पर,

सबको निगल जाने वाला।


जितनी पाटी थी हमने,

सैकड़ों साल में,

सबका साथ कहते-कहते,

बस एक दशक में,

खाई बढ़ गई उतनी।


कहेंगे श्वेत है सभी रंगों का मेल,

उन्हें दिखेगी न ये उदासी,<

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