नारी की व्यथा's image
143K

नारी की व्यथा

मैं सरिता,

मैं चंचला,

बहती रहती हूँ कल-कल।

न तट मेरे, न घाट मेरे,

वो भी बस नाम के मेरे।

बूँदें जल की मैं सागर की,

पर सागर किसका?

मेरे से जन्मने वाले,

मेरे साँसों से जीने वाले,

वो भी कहाँ मेरे?

निर्मल शीतल मैं प्रवाहिणी।

कितना मैल समेटती,

मन का भी, तन का भी,

उफ़ तक ना करती,

बस बहती रहती सिंधुगामिनी।

कितना

Read More! Earn More! Learn More!