मेरे कुछ दोहे
देश फर्निचर काठ का,
नेता दीमक हाय।
ऊपर से सब ठीक हैं,
अंदर भीतर खाय।।
गाँधी तेरे देश में,
मदिरा बिकती खूब।
ऊपर से सत्संगी हैं,
भीतर गए हैं डूब।।
मैं तो तेरे प्रेम में,
छो
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मेरे कुछ दोहे
देश फर्निचर काठ का,
नेता दीमक हाय।
ऊपर से सब ठीक हैं,
अंदर भीतर खाय।।
गाँधी तेरे देश में,
मदिरा बिकती खूब।
ऊपर से सत्संगी हैं,
भीतर गए हैं डूब।।
मैं तो तेरे प्रेम में,
छो