
हम चाहते नहीं थे कि
जहाँ में ख़ून बहे,
पर तेरी नापाक करतूतें
कब तक सहें?
अब सबक दे देना
अपने पिल्लों को,
हिंदुस्तान की सीमाओं से
कोसों दूर रहें।
हम अहिंसा के पुजारी थे,
शांति का परचम लहराते थे,
तू दहशत फैलाता था,
हम सहनशील मुस्कुराते थे।
पर कब तक तेरे वे दंश सहें,
जो जग में मातम फैलाते हैं?
अब ठान लिया इन शेरों ने,
अब तेरे विष का ही अंत करें।
सिंधु की लहरें बोल रही हैं,
हर हिंदुस्तानी हुंकार रहा,
रक्तबीज का करन
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