दर्पण's image

जिंदगी यु भी बसर करते है आपने आँगन में ही अजनबी से रहते है

 यादो को संजोय बेजुबन सा दर्पण को तकते है 

 ये दर्पण भी कितने रूप दिखता है मन सोचने को विवस सा हो जाता है

 कितने हि छवी को दर्शाता है और खुद का चेहरा देखने को तरस जता है 

 हँसी खुशी गम आँसु सब तो देखे है और दिखाया है

 अब सोचता है कि अपने लिए क्या बचाया है

 सोचता हूँ अगर दर्पण भी आपना चेहरा देख पाता कितना अच्छा ह

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