बंदिश's image

इक लौ इक तुम इक हम और दीवारे

कब तक यूँही इक दूसरे को निहारे

इतनी बंदिशे भी क्यों कुबूल थी हमे

अंजान से हम इक दूसरे को पुकारे 


जलती हुई लौ और धड़कता हुआ दिल

साँसों की जुंबिश तेरे अधरों का तिल

पलके भी अब तो जड़ हो गई थी 

तकती रही आँखे तू आकर तो मिल


लबो से भी कहते जो

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