ये दुनिया है दुनिया का रंग, तब कैसा-अब कैसा।
हर इंसां के जीने का ढंग, तब कैसा-अब कैसा।
मां-बीबी-बहिन-बेटी का रिश्ता, तब भी था और अब भी है।
प्यार-मुहब्बत का फरिश्ता, तब भी था और अब भी है।
हर रिश्ते में है अपनापन, तब कैसा-अब कैसा।
इंसां को मिला-‘तन’-ढकने को वस्त्र बनाये खुद उसने।
रूख को सजाने की खातिर, कई लेप लगाये खुद उसने।
अपने तन को ढकने का ढंग, तब कैसा-अब कैसा।
इश्क
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