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अपने देश में

शैशव से बुढ़ापे तक

चलता चला आया

सोचता हूं अब तक

क्या खोया क्या पाया।


पहले पहल चला तो

न बायां देखा न दायां

बीचोंबीच एक सीध में

स्वय॔ को चलते पाया ।


कभी कभी बाईं ओर

कोई मोड़ भी आया

थोड़ी दूर

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