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दो घड़ी पहले


आज की कविता मन को कुछ विचलित कर सकती है जो मैंने 2008 में लिखी थी सत्य घटना पर आधारित है मुझे आफिस टाइम में समुद्र के किनारे कांडला पोर्ट गुजरात में एक लड़का मिला था लेकिन कुछ ही घंटों बाद सड़क दुर्घटना में स्वर्ग वासी हो जाता है वह मेरे मन को बहुत विचलित कर गया जिसको मैंने कविता के रूप में ढाला है                                       

आत्मबल , विश्वास जुनून से भरा वह ,
निर्भीक खड़ा था वह मेरे सामने,
एकटक निहारे जा रहा था,
मैं भी सकुचाते मन से उसे भांप रहा था,
उम्र करीब बारह चौदह बसंत 
उम्मीदों का न कोई अंत,
इच्छाओं की चादर के बाहर पैर,
अपना सा दिख रहा था होते हुए गैर,
रंग सांवला जैसे कोई बावला,
कैपरी और पैंट के बीच का कोई पहनावा नीचे,
उसके छेदों के चकत्तों से पैर 
दिख रहा था,
फटी कमीज टूटी चप्पल फिर भी हंस रहा था,
सांवले चेहरे पर श्वेत दंतपंक्ति दमक रही थी,
केश लटें धूमिल हो कानों के नीचे लटक रही थी,
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