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ग़ज़ल का शाइरी का ख़द्द-ओ-ख़ाल दो निकाल दो
ग़म-ए-हयात को सुख़न में ढाल दो निकाल दो

उरूज-ए-इश्क़ से गिराओ यूं न एकबारगी
मुझे ज़रूरी वक़्त-ए-ज़वाल दो निकाल दो

ग़म-ए-फ़िराक़ दिल की पिछली सफ़ में बैठा बच्चा है
इसे क्लास में कठिन सवाल दो निकाल दो 

कि कार-गह-ए-दिल से गर निकालना ही है मुझे
तो पहले मुझ
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