![महिला दिवस's image](/images/post_og.png)
आज बिटियाँ थोड़ी विचलित सी थी
माँ को देख वो विस्मित सी थी
जिसको रहते थे हज़ारों काम
नहीं था एक पल को आराम
आज सुबह से वो मुक्त सी थी
अपने विचारो में लुप्त सी थी
जो रहती थी बेसुध बेसुध
लड़ती थी नित एक नया युद्ध
आज उसके नैनो में गर्व सा था
यह दिन उसका एक पर्व सा था
जो लोग उपहास बनाते थे
अकारण ही उसे रुलाते थे
आज वही उसकी प्रचिती पढ़ रहे थे
प्रशंसा में उसकी नए शब्द गढ़ रहे थे
यह सब देख बिटिया से रहा न गया
इतना प्रीत व्यवहार सहा न गया
बनाकर सूरत वो अपनी भोली
माँ के आंचल में बैठ कर बोली
क्या सूरज पश्चिम से है निकला
या हवाओ ने अपना रूख़ है बदला
कैसे ये लोग हुए इ
Read More! Earn More! Learn More!