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#लक्ष्मण मूर्छित होने पर राम का विलाप


हाय! ये घोर अँधकार कैसा वज्रपात बन आया है

क्यों काल का साया मेरे भाई पर मंडराया है

तुम बिन मेरा क्या होगा, क्यों मौन हो अनुज

किसी अपने के खोने का दुःख कैसे सहता है मनुज

रण अग्नि में तुम्हारी आहुति दे, किया है मैंने घोर पाप

जीवन भर भातृ वियोग में जलू, यही है मेरा पश्चाताप

यदि यही से रण छोड़ चलू तो सीता जीवंत बचेगी क्या?

लंका जीत उसे लेने जाऊ, तुम बिन वो लौट चलेगी क्या?


जब तुम्हे यह ज्ञात हुआ कि मुझे भोगना है वनवास

मेरे व सीता की सेवा हेतु छोड़ आये सब भोग विलास

तुम्हारी रक्षा सर्वोपरि देकर आया था ये वचन

माँए रो रो कर प्राण त्यज देंगी जब पहुँचूँगा तुम बिन लखन

जब प्रश्न करेगी उर्मिला, क्या मुझे मिला है कोई श्राप

आप अनुज बिन यहाँ आये क्यों ,क्यों भोगू मैं ये संताप

उसके नैनो की अश्रु धार व प्रश्नो का उत्तर न दे पाउँगा

या पाषाण सा खड़ा रहूँगा या टूट कर वही बिखर जाऊंगा


वचन दिया था तुम्हे विभीषण

लंका का राज तुम्हे दिलवाऊंगा

अब त

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