मेरी उधार की ज़िन्दगी,कट रही है।
बस कट ही रही है!
किश्त (दर्द) तो हर रोज़ भरता हूँ,पर कमाल है कि-
उधार कम ही नहीं होता!
कैसा कर्ज़ है ये कि,कर्ज़ देने वाले को (ख़ुदा)-
कोई ग़म नहीं होता।
मेरी उधार की ज़िन्दगी,कट रही है।
बस कट ही रही है!
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