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विश्वास और बेटियां

*विश्वास*


पास में मकान था, पडौसी था, इंसान था

उम्र में बड़ा था, बस इसीलिये सम्मान



एक दिन मौका देखकर, वो आ गया मकान में

गुड़िया ने हाथ जोड़े, खड़ी हुई सम्मान



बेटा कहा, बैठा रहा, उलझाये रखा बात

पिता तुल्य बातें कहीं, कुछ प्रसाद रक्खा हाथ में



उस भोली बिटिया को वो, प्यारी सी बातें भा गई

आदर में, सत्कार में, प्रसाद को वो खा गई



चक्कर खा कर गिर गई, वो फर्श पर अफसोस

कुछ ही पलों की दूरी पर लड़की हुई बेहोश थी



रिश्तों में उलझाके था, रिश्तों को कोई ठग

धरती हुई बेचैन मानो, चाँद था सुलग गया



मानवता के मुँह पे था, ताला सा मानो लग

एक गिद्ध मानो माँस को था नोचने सा लग गया

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