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सहज मनुष्य हूँ

मेरे हृदय की उत्कंठा से उद्भूत हुआ,वह साकार स्वप्न हो तुम 

तुम ही कहो, फिर कैसे मस्तिष्क का अधिकार स्वीकार करुँ

न मैं संन्यासी न वैरागी और न ही अपरिग्रह का व्रत ही लिया 

तुम ही कहो, फिर

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