तुम हो प्रबुद्ध !
ना जाने क्यों ? हो रहे क्रुद्ध !
मन की ज्वाला को शांत करो
हे कुटिल ! क्रुद्ध ! मानव –
विध्वंसक !
अपने मन की तुम तजो आग !
कुछ करो काज ऐसा जग में
अपकीर्ति न हो जग-जीवन में
सुन्दर हों तेरे कर्म सकल !
उत्तम भावों का हो प्रसार !
तुम मानव हो !
छोड़ो मन से सब घृणा–पाप !
बन बुद्ध ! प्रबुद्ध औ' शुद्ध भाव !
मन में न रखो तुम मोह – द्रोह !
तज दो मन से सब बैर -भाव !
सम में स्थिति सबमें अनुराग !
छोड़ो हृद से गन्दे – विचार !
हे मानव !
विषधर न बनो !
विषम भाव हैं–व
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