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उद्वेलित मन

ओ समंदर की लोल लहरों से खेलती हवाओं !

मेरे तपते दिल से क्यों खेलना चाहती हो ?

खिड़कियां बन्द कर लूँ या तुम्हारे संग बह जाऊँ ? 

तुम्हें भरलूँ बाहों में या मधुस्वर में गाऊँ ? 

फिजाओं में घुल जाऊँ या मन के सितार छेडूं ?

बहारों के तराने गाऊँ , कोकिल कल
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